लेखनी कहानी प्रतियोगिता-17-Dec-2022
बढ रहा मन का बौझ रुकती हुई धड़कन ए धीमी हुई सांसे
बुला रही किसी अपने को
बढ़ रहा है मन का बोझ
करीब नहीं कोई स्नेह के फिर भी
याद कर रहा है किसी अपने को
बढ़ रहा है मन का बोझ
बहते हुए '',अश्क ,'लड़खड़ाते ,'हुए अल्फाज
दिखाना चाहती हूं किसी अपने को
बढ़ रहा है मन का बोझ
राहे सूनी निगाहें सूनी
सुने जिंदगी के हर एक पल
याद कर रहे हैं किसी अपने को
बढ़ रहा है मन का बोझ
अपने करीब नहीं गैरों को सुनाएं वह तकदीर नहीं
हर एक इल्जाम लगा हमारी बर्बादी का हम पर
सुना सकू ये दास्तां ऐसा कोई करीब नहीं
बढ़ रहा है मन का बोझ
खुदा की खुदाई छोटी मैंने
उससे हर बुराई छोड़ दी मैंने
अब तो हर रजा में राजी हूं मैं
सभी से उम्मीद छोड़ दी मैंने
बढ़ रहा है मन का बोझ
लगी जो आग उस मे मुझे जल जाने दे
ना रोक मुझे तू जो होता है वह जाने दे
जाने कब से जमा था सीने में यह लावा
अश्क बन कर ही सही इसे बेह जाने दे
बढ़ रहा है मन का बोझ
परछाई है बस अपनी
जब सब ने हमको तनहा कर दिया
जिंदगी का तजुर्बा आज काम आया
जब अपनों ने पराया कर दिया
बढ़ रहा है मन का बोझ
स्नेह🍁🍁
Radhika
09-Mar-2023 01:31 PM
Nice
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Muskan khan
19-Dec-2022 04:13 PM
Nice
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Rajeev kumar jha
18-Dec-2022 10:25 AM
बेहतरीन
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